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Sunday, March 21, 2021

**आज की मुरली का सार 22.03.2021 ,परमात्मा ,देवी-देवता, परमधाम, ब्रह्मा, सतयुग, Positive...Think

                          ** मेरे प्यारे भाइयों और बहनों आप कैसे हो जी ? **

**नोट = जरूरी इन बातो को  आप स्वीकार कर लेवे।**

★(1).- भगवान एक है, गॉड इज वन। सभी आत्माओं का पिता एक है। उनको परमपिता परमात्मा कहा जाता है। सृष्टि का रचयिता एक है। अनेक हो ही नहीं सकते। जिस प्रकार हमारे शरीर के पिता अनेको नही हो सकते है। इस सिद्धान्त अनुसार मनुष्य अपने को भगवान कहला नहीं सकते। सतयुग में कोई पतित नहीं रहते। साधू आदि तो कह देते हैं ईश्वर सर्वव्यापी है। एक तरफ कहते भगवान एक है फिर यहाँ तो बहुत अपने को भगवान कहलाते हैं। श्री-श्री 108 जगतगुरू कहलाते हैं। अब जगत का गुरू तो एक ही बाप है। सारे जगत को पावन बनाने वाला एक परमात्मा सारी दुनिया को लिबरेट(छुडाना) करता है दु:ख से। वही दु:ख हर्ता सुख कर्ता है। मनुष्यों को यह नहीं कहा जा सकता है।

★(2).- अब वानप्रस्थ अवस्था है। वानप्रस्थ वा शान्तिधाम(परमधाम) एक ही बात है। यहाँ आत्मायें ब्रह्म तत्व में रहती हैं, जिसको ब्रह्माण्ड कहते हैं। वास्तव में आत्मायें कोई अण्डे मिसल नहीं हैं। आत्मा तो स्टार है।आत्मायें इस सृष्टि पर 5 तत्वों के बने हुए शरीर में प्रवेश कर पार्ट बजाती हैं - शुरू से लेकर। परमात्मा और ब्रह्मा, विष्णु, शंकर सब एक्टर्स हैं।

★(3).- गाया हुआ है परमपिता परमात्मा आकर ब्रह्मा द्वारा फिर से स्थापना कराते हैं तो ब्राह्मण जरूर चाहिए। ब्रह्मा और ब्राह्मण कहाँ से आये? यह जानने के लिये आज ही संपर्क करे = प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय या पीस आफ मांइड चैनल देखिए ।  

★(4).- बाप(परमात्मा)  आकर आदि सनातन देवी-देवता धर्म स्थापन करते हैं। तो ऐसे नहीं कि नये सिर आते रहते हैं। जैसे दिखाते हैं प्रलय हुई फिर पत्ते पर सागर में आया....। अब यह तो सब कहानियां बनाई हुई हैं। यह वर्ल्ड की हिस्ट्री - जॉग्राफी (सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग) रिपीट होती रहती है। आत्मा अमर है। उसमें पार्ट भी अमर है। पार्ट कभी घिसता नहीं है। सतयुग में वही लक्ष्मी-नारायण की सूर्यवंशी राजधानी चलती आती है। कभी बदलती नहीं। दुनिया नई से पुरानी, पुरानी से नई होती रहती है। हर एक को अविनाशी पार्ट मिला हुआ है। बाप कहते हैं भक्ति मार्ग में भक्त जिस-जिस भावना से भक्ति करते हैं वैसा साक्षात्कार कराता हूँ। कोई को हनूमान का, गणेश का भी साक्षात्कार कराता हूँ। उनकी वह शुभ भावना पूरी करता हूँ। यह भी ड्रामा में नूँध है। मनुष्य फिर समझते हैं कि भगवान सबमें है इसलिए सर्वव्यापी कह देते हैं।

**मेरे अति प्यारे भाइयो और बहनों आपने अपना किमती समय निकालकर इस पोस्ट को पढ़ा इसके लिए धन्यवाद। 

अगर पोस्ट पढ़ने के बाद आपके मन में क्या प्रतिक्रिया हुई कृप्या कमेंट कीजिए और अगर आपको आपको लगे कि इस पोस्ट विचार किसी के काम आ जाये तो कृप्या इसे शेयर कीजिए। अच्छा मिलते रहेंगे।— सहदृय से धन्यवाद

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