** मेरे प्यारे भाइयों और बहनों आप कैसे हो जी ? **
**नोट = जरूरी इन बातो को आप स्वीकार कर लेवे।**
★(1).= मेरा(परमात्मा) पार्ट सिर्फ इस संगम समय ही है। सो भी मुझे अपना शरीर नहीं है। मैं इस शरीर(प्रजापिता ब्रह्मा) द्वारा एक्ट करता हूँ। मेरा नाम शिव है। बच्चों को ही तो समझायेंगे ना। पाठशाला कोई बन्दरों वा जानवरों की नहीं होती है। परन्तु बाप कहते हैं कि इन 5 विकारों(काम, क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार) के होने कारण शक्ल तो मनुष्य जैसी है लेकिन कर्तव्य बन्दरों जैसे हैं। बच्चों को बाप समझाते हैं कि पतित तो सब अपने को कहलाते ही हैं। परन्तु यह नहीं जानते कि हमको पतित कौन बनाते हैं और पावन फिर कौन आकर बनाते हैं? पतित-पावन कौन?
★(2).= यह है ही भारत का प्राचीन योग। पहले-पहले जो राजयोग था, जिसका गीता में वर्णन है। गीता का योग किसने सिखलाया था? यह भारतवासी भूल गये हैं। बाप(परमात्मा) समझाते हैं कि बच्चे योग तो मैंने सिखलाया था। यह है रूहानी योग। बाकी सब हैं जिस्मानी योग। संन्यासी आदि जिस्मानी योग सिखलाते हैं कि ब्रह्म(परमधाम) से योग लगाओ। वह तो रांग हो जाता है। ब्रह्म तत्व तो रहने का स्थान है। वह कोई सुप्रीम रूह नहीं ठहरा। बाप को भूल गये हैं। विलायत में योग था नहीं। हठयोग और राजयोग यहाँ ही है। वह निवृत्ति मार्ग(घर बार छोड़ने वाला मार्ग) वाले संन्यासी कब राजयोग सिखला न सकें। सिखाये वह जो जानता हो। संन्यासी लोग तो राजाई भी छोड़ देते हैं। गोपीचन्द राजा का मिसाल है ना। राजाई छोड़ जंगल में चला गया। उसकी भी कहानी है। संन्यासी तो राजाई छुड़ाने वाले हैं, वह फिर राजयोग कैसे सिखला सकते।
★ एक बात यह सोचने वाली साधु,सन्यासी घर बार छोड देते है तो उनको घर ,गृहस्थी से बेमुख है तो उनको तो घर,गृहस्थी का नालेज नही होगा, तो वहा जाकर मनुष्य तो घर,गृहस्थी को सुखी बनाने के लिये उनके पास जाते है और साधु सन्यासी तो निवृत्ति मार्ग मने घर बार छोडने वाले होते है तो घर,गहृस्थी का नालेज कैसे दे सकते है, सोचने वाला विषय है !!!?
★सतयुग में कोई दुर्गति वाला होता नहीं। यह विलायत में जाकर योग सिखलाते हैं परन्तु वह है हठयोग। ज्ञान बिल्कुल नहीं। अनेक प्रकार के हठयोग हैं। यह है राजयोग, इसको रूहानी योग कहा जाता है। क्यो आप यह रूहानी योग सीखना चाहते है तो आज ही संपर्क करे प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय या पीस आफ मांइड चैनल(pmtv) देखिए ।
★(3).= कोई तो ऐसे ही देखने आते हैं कि यहाँ(प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय) क्या सिखाते हैं। ब्रह्माकुमार कुमारियाँ इतने ढेर बच्चे हैं। जरूर प्रजापिता ब्रह्मा होगा ना जिसके इतने बच्चे आकर बने हैं, जरूर कुछ होगा तो जाकर उन्हों से पूछे तो सही। तुमको प्रजापिता ब्रह्मा से क्या मिलता है? पूछना चाहिए ना! परन्तु इतनी बुद्धि भी नहीं है। भारत के लिए खास कहते हैं। गाया भी जाता है पत्थरबुद्धि(मनुष्य) सो पारसबुद्धि(देवी,देवता)। पारसबुद्धि सो पत्थरबुद्धि। सतयुग त्रेता में पारसबुद्धि गोल्डन एज थे फिर सिलवर एज दो कला कम हुई इसलिए नाम पड़ा चन्द्रवंशी क्योंकि नापास हुए हैं। यह भी पाठशाला(प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय) है।
★(4).=सूर्यवंशी 8 डिनायस्टी चलती हैं। जैसे एडवर्ड द फर्स्ट, द सेकेण्ड चलता है। उसी आधार पर फिर शास्त्रवादी और ज्योषियों 8 रत्न की खोज को चिन्हित कर दिया । और 9 वा रत्न शिवबाबा जो 8 डिनायस्टी के महाराजा महारनी बनाते है सूर्यवंशी अर्थात सतयुग में ।
★क्रिश्चियन घराने ने भारत की राजाई हप की। भारत का अथाह धन ले गये फिर विचार करो तो सतयुग में कितना अथाह धन होगा। वहाँ(जायदाद-सतयतुग,त्रेता की ) की भेंट में तो यहाँ कुछ भी नहीं है। वहाँ सब खानियाँ भरतू हो जाती हैं।
★(5).= समझते नहीं कि यह रावण कब आया? हम क्यों उनको जलाते हैं। कहते हैं कि यह रावण(काम, क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार) तो परम्परा से चला आता है। बाप समझाते हैं कि आधाकल्प(सतयतुग,त्रेता के खत्म हाने के बाद जब तीसरा युग द्वापर युग आंरभ होता है जब) के बाद यह रावण राज्य शुरू होता है।
**मेरे अति प्यारे भाइयो और बहनों आपने अपना किमती समय निकालकर इस पोस्ट को पढ़ा इसके लिए धन्यवाद।
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