** मेरे प्यारे भाइयों और बहनों आप कैसे हो जी ? **
“मीठे दोस्तो किस रंग में रंगे है ?" ज्ञानी और योगी की दृष्टि, में तो मनुष्य - सृष्टि ही एक विराट खेल है। यह सृष्टि रूपी खेल "दो रंगी लीला है। इस सृष्टि में दो ही- एक माया(रावण-बुराईया) का रंग और दूसरा ईश्वर का रंग इस रंगमय पर हम हर एक मनुष्य दोनो में से एक न एक रंग में तो रंगता ही है। निसन्देह, ईश्वरीय रंग में रंगना - श्रेष्ठ होली मनाना है क्योंकि इस रंग में रंगा हुआ मनुष्य ही योगी है। माया के रंग में रंगा हुआ मनुष्य तो भोगी है। अब हर एक मनुष्य को स्वय से पुछना चाहिए कि "मैं किस रंग में रंगा हुआ हूँ, माया के रंग में या ईश्वर के रंग मे ?
" ओ हो, यदि मैने ज्ञान की होली न मनाई तो मेरी आत्मा बेरंगी हो जायेगी।
**आइये जानें, होली के मनाने के रूहानी(आत्मिक) ढंग , विघ्नों का अनदेखा कर बढ़े चलो -
होली
के सम्बन्ध में प्रहलाद की बुआ होलिका की जो कहानी है अथवा प्रहलाद पर अत्याचारों का
जो प्रसंग है, उससे मैं यह शिक्षा लेता हूँ कि सत्य की जीत ही हुआ करती है। पिता परमात्मा की याद में रहने वाले
प्रहाद रूपी बच्चों पर अत्याचार भी होते हैं और धर्मपरायण आत्माओं के मार्ग में
विघ्न भी आते हैं परन्तु परमात्मा का संग-सहारा न छोड़ने वाले की रक्षा भी
परमात्मा द्वारा होती अवश्य है। अतः होली का उत्सव मुझे प्रोत्साहित करता है कि
मैं विघ्नों को अनदेखा कर प्रभुपथ पर बढ़ता चलूँ।
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NICE THOUGHTS JEE
ReplyDeleteवहुत सुन्दर👌
ReplyDeletethanx jee.aap kaise ho jee?
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