** मेरे प्यारे भाइयो और बहनो आप कैसे हो ?
** प्रश्न = परमात्मा के ध्यान की विधि क्या है ?
**उत्तर = परमात्मा का ध्यान लगाने से पहले हम परमात्मा और देवता में अंतर समझ ले। परमात्मा — परम+आत्मा — अर्थात सर्व आत्माओ से उच्च, सब आत्माओं के पिता । जिस प्रकार शरीर के माता पिता सबके अलग—अलग होते है उसी प्रकार आत्मा जो कि बिन्दु स्वरूप होती है उनके एक ही पिता होते है जिनको परमपिता परमात्मा शिव कहते है। जिस प्रकार आत्मा को नही देख सकते है उसी प्रकार परमात्मा का शरीर नहीं होता है वह बिन्दु स्वरूप होत है। परमात्मा जन्म—मरण के चक्र में नही आते है।वैसे भी आपने देखा शिवलिंग तीन पट्टे होते बीच में बिन्दु मने परमात्मा शिव और पहला पट्टा ब्रह्या अर्थात ब्रह्या के तन आकर नई सृष्टि की स्थापना, दुसरा पट्टा विष्णु अर्थात लक्ष्मी नारायण जो नई सृष्टि सतयुग की पालना करते है और तीसरा पट्टा शंकर का जो विनाश का प्रतीक है। मंदिर के आरती में आखरी में भी गाते है ब्रह्या देवता नम:,विष्णु देवता नम:, शंकर देवता नम: और आखरी मे गाते है परमात्मा नम: अर्थात तीनो देवताओ को रचने वाला परमात्मा ही है।
परमात्मा केवल कुछ समय के लिये ब्रह्या के तन आकर नई सृष्टि
का नालेज देते है जिसको राजयोग भी कहा जाता है जिसका वर्णन गीता में आता है। अगर आप
राजयोग नि:शुल्क सीखना चाहते है तो आज ही संपर्क करे —प्रजापिता ब्रह्याकुमारी ईश्वरीय
विश्वविद्यालय या पीस आफ माईड चैनल।
** अब देवताओं के बारे में जानते है। देवताओ के शरीर होते है वे भी मनुष्य
होते है परन्तु उनमे दैवीय गुण जैसे प्यार, शांति,आनंद, खुशी, सुख, पवित्रता, धीरजता,नम्रता
होते है, देवता भी एक पद होता है देवताओं ने भी परमात्मा से योग लगाकर देव पद पाया।
देवता भी
एक पद है कोई जादु नहीं है एक छड़ी घुमाई आप देवता बन गये। देवताये सतयुग,त्रेता युग
में रहते थे । द्वापर और कलियुग में मनुष्य रहते थे।
** अब प्रश्न यह आता है हमारे सामने कि परमात्मा की ध्यान की विधि क्या है? चुकि परमात्मा आत्माओं का पिता है तो स्वंय को भ्रकृटि (जहा तिलक या बिन्दी लगाते है) में ज्योर्तिमय बिन्दु स्वरूप आत्मा समझकर परमात्मा को याद करना ही ध्यान की श्रेणी में आता है।

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