** मेरे प्यारे भाइयों और बहनों आप कैसे हो जी ? **
** आज का विचार = चिन्ता उतनी करो कि काम हो जाए, ना कि इतनी कि जिन्दगी तमाम हो जाए।
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**आज की मुरली का सार 10.04.2021 :-
**★(1).= मनुष्य तो समझते हैं वह(परमात्मा) सर्वशक्तिमान् हैं। जैसे कृष्ण को भी सर्वशक्तिमान् मानते हैं। उनको स्वदर्शन चक्र दे दिया है। समझते हैं उनसे गला काटते हैं। परन्तु यह नहीं समझते कि देवतायें हिंसा का काम कैसे करेंगे। वह तो कर नहीं सकते। देवताओं के लिए तो कहा जाता है - अहिंसा परमो धर्म था। उन्हों में हिंसा कहाँ से आई? जिसको जो आया वह बैठकर लिख दिया है। कितनी धर्म की ग्लानी की है।
**★(2).=कलियुग में है क्षण भंगुर सुख। मनुष्य दु:ख में रहते हैं। मनुष्य यह नहीं जानते कि सतयुग में दु:ख का नाम निशान नहीं होता है। उन्होंने वहाँ(सतयतुग) के लिए भी ऐसी बातें बता दी हैं। वहाँ कृष्णपुरी में कंस था, यह था..। कृष्ण ने जेल में जन्म लिया। बहुत बातें लिख दी हैं। अब श्रीकृष्ण स्वर्ग का पहला नम्बर प्रिन्स, उसने क्या पाप किया?
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**स्वधर्म = श्रीमद्भगवद्गीता में भी यही कहा गया है कि — कोई किसी का शत्रु अथवा मित्र नहीं है, अपितु आत्मा ही स्वयं अपना शत्रु और मित्र है। जब हम आत्मा के स्वधर्म में स्थित होकर कार्य—व्यवहार में आयेंगे तब हमसे जो भी होगा, वह धर्म का कार्य होगा और जहाँ धर्म का कार्य होगा, वहाँ आत्मा स्वयं ही स्वयं मित्र है। अगर आत्मा के स्वधर्म में स्थित न होकर, अपने को मात्र देह समझ कर कार्य—व्यवहार में आयेंगे तो जाने—अनजाने बहुत सारे अधर्म के कार्य होंगे,वहाँ आत्मा स्वयं ही स्वयं का शत्रु है। भले दुनिया का ज्ञान न हो, भले दुनिया के अपार सुख न हों लेकिन आत्मा के स्वधर्म में रहना सीख लिया तो सब कुछ पा लिया, वर्ना सब कुछ प्राप्त होते हुए भी जन्म-जन्मान्तर के लिए खाली के खाली रह जायेंगे।
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*मेरे अति प्यारे भाइयो और बहनों आपने अपना किमती समय निकालकर इस पोस्ट को पढ़ा इसके लिए धन्यवाद।
अगर पोस्ट पढ़ने के बाद आपके मन में क्या प्रतिक्रिया हुई कृप्या कमेंट कीजिए और अगर आपको लगे कि इस पोस्ट के विचार किसी के काम आ जाये तो कृप्या इसे शेयर कीजिए। अच्छा मिलते रहेंगे। = सहदृय से धन्यवाद
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