** मेरे प्यारे भाइयों और बहनों आप कैसे हो जी ? **
**आज का विचार-
निर्धनता में भी हँस सकने वाला व्यक्ति निर्धन नहीं होता है।
*मुरली का सार 09.04.2024:-
**ओम् नमो शिवाए... ओम् शान्ति। यह महिमा है सबके बाप(परमात्मा शिव) की। याद किया जाता है भगवान अर्थात् बाप को, उन्हें मात-पिता कहते हैं ना। गॉड फादर भी कहा जाता है। ऐसे नहीं सब मनुष्यों को गॉड फादर कहेंगे। बाबा तो उनको (लौकिक— शरीर कि पिताजी— बाप को) भी कहते हैं। लौकिक बाप जिसको कहते हैं वह भी फिर पारलौकिक बाप(परमात्मा) को याद करते हैं। वास्तव में याद करने वाली आत्मा है, जो लौकिक बाप को भी याद करती है। वह आत्मा अपने रूप को, आक्युपेशन को नहीं जानती है। आत्मा अपने को ही नहीं जानती तो गॉड फादर को कैसे जानेगी। अपने लौकिक फादर को तो सब जानते हैं, उनसे वर्सा(जायदाद) मिलता है। नहीं तो याद क्यों करें। पारलौकिक बाप से जरूर वर्सा(जायदाद) मिलता होगा। कहते हैं ओ गॉड फादर। उनसे रहम, क्षमा मागेंगे क्योंकि पाप करते रहते हैं। यह भी ड्रामा(बनी बनाई घटनाये) में नूँध है। परन्तु आत्मा को जानना और फिर परमात्मा को जानना, यह डिफीकल्ट सब्जेक्ट है। इज़ी ते इज़ी और डिफीकल्ट ते डिफीकल्ट।
**परमात्मा निराकार है, यह भी समझ जाते हैं। बाकी मैं आत्मा हूँ, मेरे में 84 जन्मों का पार्ट भरा हुआ है। बाप(परमात्मा) भी बिन्दी है, उनमें सारा ज्ञान है। उनको याद करना है। यह बातें कोई भी समझते नहीं। मुख्य बात समझते नहीं हैं। वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी की नॉलेज बाप ही देते हैं। गवर्मेंन्ट भी चाहती है कि वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी होनी चाहिए।
**योग(परमात्मा की याद) से विकर्म विनाश होंगे। सारी दुनिया इस बात में भूली हुई है आत्मा और परमात्मा के बारे में, कोई कहते परमात्मा हजारों सूर्यों से तेजोमय है, परन्तु यह हो कैसे सकता। जबकि कहते हैं - आत्मा सो परमात्मा फिर तो दोनों एक हुए ना। छोटे बड़े का फर्क नहीं पड़ सकता। आत्मा का रूप बिन्दी है। आत्मा सो परमात्मा है तो परमात्मा भी बिन्दी ठहरा ना। इसमें फर्क तो हो न सके। सब परमात्मा हो जाएं तो सब क्रियेटर हो जाएं। सर्व की सद्गति करने वाला तो एक बाप है ना। बाकी तो हर एक को अपना पार्ट मिला हुआ है। यह बुद्धि में बिठाना पड़े, समझ की बात है। बाप(परमात्मा) कहते हैं मुझे याद करो तो कट निकल जायेगी। यह मेहनत है। एक तो आधाकल्प(द्वापर,कलियुग) देह-अभिमानी हो रहे हो। सतयुग में देही-अभिमानी(अपने को आत्मा समझना) रहते भी बाप को नहीं जानते। ज्ञान को नहीं जानते। इस समय जो तुमको(ब्रह्माकुमार/कुमारी) नॉलेज(आत्मिक ज्ञान — राजयोग) मिलती है वह नॉलेज गुम हो जाती है। वहाँ(सतयुग, त्रेता) सिर्फ इतना जानते हैं कि हम आत्मा एक शरीर छोड़कर दूसरा लेते हैं। पार्ट बजाते हैं। इसमें फिकर की क्या बात है। हर एक को अपना-अपना पार्ट बजाना है। रोने से क्या होगा? यह समझाया जाता है अगर कुछ समझें तो शान्ति आ जाए। बुजुर्ग लोग समझाते भी हैं, रोने से क्या वापिस थोड़ेही आयेंगे। शरीर छोड़ आत्मा निकल गई, इसमें रोने की क्या बात है। अज्ञानकाल में भी ऐसे समझते हैं। परन्तु वह यह थोड़ेही जानते हैं कि आत्मा और परमात्मा क्या चीज़ है। आत्मा में खाद(विकर्मो की) पड़ी है, वह तो समझते आत्मा निर्लेप है। तो यह बहुत महीन बातें हैं।
*मेरे अति प्यारे भाइयो और बहनों आपने अपना किमती समय निकालकर इस पोस्ट को पढ़ा इसके लिए धन्यवाद।
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