** मेरे प्यारे भाइयों और बहनों आप कैसे हो जी ? **
**नोट = जरूरी इन बातो को आप स्वीकार कर लेवे।**
प्रश्नः-परमात्मा का कौन सा कर्तव्य कोई भी मनुष्य नहीं कर सकते हैं और क्यों?
उत्तर:- सारे विश्व में शान्ति स्थापन करने का कर्तव्य एक परमात्मा का है। मनुष्य, विश्व में शान्ति स्थापन नहीं कर सकते क्योंकि सब विकारी (काम, क्रोध, मोह,लोभ,अहंकार) हैं। शान्ति की स्थापना तब हो जब बाप को जानें और पवित्र बनें। परमात्मा को न जानने के कारण निधन के बन गये हैं।
★(1). ओम् का अर्थ कह देते हैं ओम् माना भगवान। परमात्मा कहते हैं - ओम् अर्थात् मैं आत्मा, यह मेरा शरीर। परमपिता परमात्मा भी कहते हैं ओम्। मैं भी आत्मा हूँ, परमधाम में रहने वाला हूँ। तुम आत्मायें जन्म-मरण के फेरे में आती हो, मैं परमात्मा नहीं आता हूँ। हाँ, मैं साकार(प्रजापिता ब्रह्मा) में आता हूँ जरूर, तुम बच्चों को सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का सार समझाने। कोई और यह समझा न सके। अगर निश्चय नहीं तो सारी दुनिया में भटकना चाहिए, ढूँढना चाहिए और कोई है जो अपना और सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का नॉलेज देते हैं। परमपिता परमात्मा के बिगर सृष्टि चक्र के आदि-मध्य-अन्त का राज़ कोई बता न सकें, कोई राजयोग सिखा न सके। पतितों {मनुष्य} को पावन{ देवी देवता} बना नहीं सकते।
★(2).तो गीता पढ़ने वालों उन्हो को हम(ब्रह्माकुमार/कुमारी) समझाना चाहते है । पहले यह पूछना चाहते है कि - परमपिता परमात्मा शिव से आपका क्या सम्बन्ध है? उनको भगवान कहेंगे। श्रीकृष्ण तो दैवीगुण वाले हैं, उनको दैवी राजधानी थी उसमें सब दैवीगुण वाले थे। अब वही पूज्य{देवी- देवता} से पुजारी {मनुष्य }बन गये हैं।
★(3).शिव आता जरूर है तब तो उनकी जयन्ती मनाते हैं, वह परमपिता परमात्मा है। जरूर आकर राजयोग सिखाते होंगे और कोई मनुष्यमात्र सिखा न सकें। कृष्ण को वा ब्रह्मा को भगवान नहीं कहा जा सकता है। जबकि सर्व का सद्गति दाता बाप(परमात्मा) एक ही है, वह ज्ञान का सागर होने के कारण सबका शिक्षक भी है, अब शिक्षक कैसे यह जानकारी प्राप्त करने के लिये संपर्क करे = प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय या पीस आफ मांइड चैनल(pmtv) देखिए ।
★(4).अब भागवत कोई धर्म शास्त्र तो नहीं है। गीता धर्म शास्त्र है, उनसे देवी देवता धर्म स्थापन हुआ। बाकी भागवत, महाभारत आदि उनसे कोई धर्म नहीं स्थापन होता। वो तो श्रीकृष्ण की हिस्ट्री लिखी है।
★(5).भारतवासी भूल गये हैं, भगवान एक निराकार को ही कहा जाता है। उनको मनुष्य याद भी करते हैं। ऐसे नहीं कि सब भगवान ही भगवान हैं। एक तरफ भगवान को याद भी करते हैं फिर ग्लानी भी करते हैं। एक तरफ कहते, सर्वव्यापी है और फिर कहते पतित-पावन आओ। परमात्मा आकर ब्रह्मा तन से ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मणों(ब्रह्माकुमार/कुमारी) को ही समझाते हैं।
★(7).एक्यूरेट कोई जानता ही नहीं है कि इन्हों(देवी-देवता) का राज्य कब था? स्वर्ग कहाँ से आया? अब तुम समझते हो बाबा(परमात्मा) आकर ब्रह्मा द्वारा स्वर्ग की स्थापना करते हैं, शंकर द्वारा नर्क का विनाश कराते हैं। महाभारत की लड़ाई भी लगी थी ना, जिससे स्वर्ग के गेट्स खुले थे। गाते हैं परन्तु कुछ भी समझते नहीं।
★(8).सतयुग में एक ही देवी देवता धर्म था और कोई धर्म नहीं था। अभी और सब धर्म हैं बाकी आदि सनातन देवी देवता धर्म है नहीं। अपने को देवी-देवता समझते ही नहीं हैं। कहते हैं हम तो पतित हैं। देवताओं के आगे महिमा गाते हैं - तुम सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण हो। अपने को कहते हैं हम विकारी हैं। मैं निर्गुण हारे में कोई गुण नाही। बाप(परमात्मा) को याद करते हैं।
★(9).घर-घर में ही झगड़ा है। बाप(परमात्मा) को न जानने के कारण बिल्कुल ही निधनके बन पड़े हैं। सतयुग में बिल्कुल ही पवित्रता, सुख, शान्ति थी। अभी फिर बाप वह पवित्रता, सुख-शान्ति स्थापन कर रहे हैं और कोई कर न सकें। भारतवासी अब नर्कवासी हैं। स्वर्ग में जब थे तो पुनर्जन्म भी स्वर्ग में लेते थे। अब पतित हैं, इसलिए पतित-पावन बाप को याद करते हैं। अभी तो बच्चे जानते हैं - पारलौकिक बाप(परमात्मा) को याद करने से ही विकर्म विनाश होंगे। लौकिक बाप से तो हद का वर्सा(जायदाद) मिलता है। पारलौकिक बेहद के बाप से बेहद का वर्सा(जायदाद-सतयतुग,त्रेता की ) ले रहे हो। यह समझने की बातें हैं। यह(प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय ) कोई सतसंग नहीं है। वह है भक्ति मार्ग, यह है ज्ञान मार्ग(राजयोग)।
**मेरे अति प्यारे भाइयो और बहनों आपने अपना किमती समय निकालकर इस पोस्ट को पढ़ा इसके लिए धन्यवाद।
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Om shanti.....mera baba shiv baba
ReplyDeleteSweet omshanti jee. Aap kaise ho jee?
Deleteपरम पिता परमात्मा के संबंध में अति उत्तम लेख लिखा है,विशेष रूप से यह कि भूमि पर पारिवारिक पिता द्वारा पारिवारिक संपत्ति की प्राप्ति होती है लेकिन स्वर्ग में परमात्मा द्वारा पारलौकिक संपत्ति की प्राप्ति होती है।
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