** मेरे प्यारे भाइयों और बहनों आप कैसे हो जी ? **
★(1). यज्ञ, तप आदि से तुम पुण्य-आत्मा नहीं बनेंगे, वह है भक्ति मार्ग, इससे
कोई भी मनुष्य पुण्य-आत्मा नहीं बनते हैं। आसुरी मत(काम,क्रोध,मोह,लोभ,अहंकार) से पाप-आत्मा
बनते-बनते सीढ़ी उतरते ही आये हैं। कितना समय हम पुण्य-आत्मा बनते हैं वा सुख का वर्सा(जायदाद)
लेते हैं - यह किसको पता नहीं है।
★(2). उस बाप{परमात्मा} को याद तो सभी मनुष्य करते हैं, उनको ही परमपिता परमात्मा कहते हैं। ब्रह्मा-विष्णु-शंकर को परमात्मा नहीं कहेंगे और किसको परमात्मा नहीं कह सकते हैं। याद सभी फिर भी निराकार बाप को ही करते हैं - ओ गॉड फादर, ओ भगवान अक्षर ही निकलते हैं। मनुष्य अपने को गॉड फादर कह न सकें। ना ही ब्रह्मा-विष्णु-शंकर अपने को गॉड फादर कह सकते हैं। उनके शरीर का नाम तो है ना। एक ही गॉड फादर है, उनको अपना शरीर नहीं है। भक्ति मार्ग में भी शिव की बहुत पूजा करते हैं। मैं{परमात्मा} सर्व का पतित-पावन, सद्गति दाता हूँ। मनुष्य बाप की महिमा करते हैं ना लेकिन उनको यह पता नहीं है कि 5 हजार वर्ष बाद आते हैं। जरूर जब कलियुग का अन्त होगा तब ही तो आयेंगे। अभी कलियुग का अन्त है तो जरूर अब आया हुआ है। तुमको(ब्रह्माकुमार/कुमारी) कृष्ण नहीं पढ़ाते हैं। श्रीमत(राजयोग) मिलती है, श्रीमत कोई कृष्ण की नहीं है। कृष्ण की आत्मा भी श्रीमत से सो देवता बनी थी फिर 84 जन्म लेते अब तुम आसुरी मत के बने हो। बाप कहते हैं- मैं आता ही तब हूँ जब तुम्हारा चक्र(सतयुग,त्रेता,द्वापर,कलियुग) पूरा होता है।
★(3). मनुष्य कहते भी हैं “गॉड फादर''। आत्मा कहती है, आत्मा का नाम आत्मा ही है। आत्मा शरीर में आती है तो शरीर का नाम रखा जाता है, खेल चलता है। आत्माओं की दुनिया(परमधाम) में खेल नहीं चलता। खेल की जगह ही यह है। नाटक में रोशनी आदि सब होती है। बाकी जहाँ आत्मायें रहती हैं, वहाँ सूर्य चांद नहीं हैं, ड्रामा का खेल नहीं चलता है। रात-दिन यहाँ होते हैं। सूक्ष्मवतन वा मूलवतन में रात-दिन नहीं होते, कर्मक्षेत्र यह है। इसमें मनुष्य अच्छे कर्म भी करते हैं, बुरे कर्म भी करते हैं। सतयुग-त्रेता में अच्छे कर्म होते हैं क्योंकि वहाँ 5 विकार(काम,क्रोध,मोह, लोभ,अहंकार) रूपी रावण का राज्य ही नहीं। बाप बैठ कर्म, अकर्म, विकर्म का राज़ बताते हैं। कर्म तो करना ही है, यह कर्मक्षेत्र है।
★(4). पहले-पहले सिर्फ भारत ही था, यह कोई नहीं जानते हैं। अभी तो नहीं है ना। यह है ही 5 हजार वर्ष की बात। कहते भी हैं क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले भारत हेविन था। रचयिता जरूर रचना रचेंगे। तमोप्रधान बुद्धि होने कारण इतना भी नहीं समझते। भारत तो सबसे ऊंच खण्ड है। पहली बिरादरी है, मनुष्य सृष्टि की। यह भी ड्रामा{बनी बनाई घटनाये} बना हुआ है। साहूकार गरीबों को मदद करते हैं, यह भी चला आता है। भक्ति मार्ग में भी साहूकार गरीबों को दान करते हैं। परन्तु यह है ही पतित दुनिया। तो जो, जो कुछ भी दान पुण्य करते हैं, पतित ही करते हैं, जिसको दान करते हैं वह भी पतित हैं। पतित, पतित को दान करेंगे, उनका फल क्या पायेंगे!!?
★(5).एक सीता की बात नहीं, सब सीतायें हैं, जो भी मनुष्य मात्र हैं। सीता को रावण(काम, क्रोध,मोह,लोभ,अहंकार) ने शोक वाटिका में डाला। वास्तव में बात सारी इस समय की है। सभी रावण अर्थात् 5 विकारों की जेल में हैं इसलिए दु:खी हो पुकारते हैं - हमको इनसे छुड़ाओ। एक की बात नहीं। बाप समझाते हैं सारी दुनिया रावण की जेल में है। रावण राज्य है ना। कहते भी हैं - रामराज्य चाहिए। गांधी ने भी कहा, संन्यासी कभी ऐसे नहीं कहेंगे कि रामराज्य चाहिए। भारतवासी ही कहेंगे।
★(6).वह{परमात्मा} ज्ञान का सागर, प्रेम का सागर है। क्राइस्ट की ऐसी महिमा नहीं करेंगे। कृष्ण को ज्ञान का सागर, पतित-पावन नहीं कहा जाता है। सागर एक होता है। चारों तरफ आलराउन्ड सागर ही सागर है। दो सागर नहीं होते हैं। यह मनुष्य सृष्टि का नाटक है, इसमें सबका अलग-अलग पार्ट है। बाप{परमात्मा} कहते हैं मेरा कर्तव्य सबसे अलग है, मैं ज्ञान का सागर हूँ। मुझे ही तुम पुकारते हो हे पतित-पावन, फिर कहते हो लिबरेटर। लिबरेट किससे करते हैं? यह भी कोई नहीं जानते। तुम जानते हो, हम सतयुग-त्रेता में बहुत सुखी थे, उसको स्वर्ग कहा जाता है। अभी तो है ही नर्क इसलिए पुकारते हैं - दु:ख से लिबरेट कर सुखधाम ले चलो। संन्यासी कभी नहीं कहेंगे कि फलाना स्वर्गवासी हुआ, वह फिर कहते हैं पार निर्वाण गया। विलायत में भी कहते हैं लेफ्ट फार हेविनली अबोड। समझते हैं, गॉड फादर पास गये। हेविनली गॉड फादर कहते हैं, बरोबर हेविन था। अब नहीं है। हेल के बाद हेविन चाहिए। गॉड फादर को यहाँ आकर हेविन स्थापन करना है।
★(7). बाप{परमात्मा} कहते हैं - मैं आकर प्रकृति का आधार(प्रजापिता ब्रह्मा) लेता हूँ, मेरा जन्म मनुष्यों मुआफिक नहीं है। मैं गर्भ में नहीं आता हूँ, तुम सभी गर्भ में आते हो। सतयुग में गर्भ महल होता है क्योंकि वहाँ कोई विकर्म होता नहीं जो सजा भोगें इसलिए उसको गर्भ महल कहा जाता है। यहाँ विकर्म करते, जिसकी सजा भोगनी पड़ती है, इसलिये गर्भ जेल कहा जाता है। यहाँ रावण राज्य में मनुष्य पाप करते रहते हैं। यह है ही पाप आत्माओं की दुनिया। वह है पुण्य आत्माओं की दुनिया - स्वर्ग, इसलिए कहते हैं पीपल के पत्ते पर कृष्ण आया। यह कृष्ण की महिमा दिखाते हैं। सतयुग में गर्भ में दु:ख नहीं होता है। बाप कर्म-अकर्म-विकर्म की गति समझाते हैं जिसका फिर शास्त्र गीता बनाया है। परन्तु उसमें शिव भगवानुवाच के बदले कृष्ण का नाम डाल दिया है।
★(8). अभी भारत रावण(काम,क्रोध,मोह,लोभ,अहंकार) से श्रापित है इसलिए दुर्गति हो गई है। यह बड़ा श्राप भी ड्रामा{बनी बनाई घटनाये} में नूँधा हुआ है। बाप{परमात्मा} आकर वर देते हैं - आयुश्वान भव, पुत्रवान भव, सम्पत्तिवान भव..... सभी सुख का वर्सा(जायदाद-सतयतुग,त्रेता की) देते हैं। तुमको आकर पढ़ाते हैं, जिस पढ़ाई (राजयोग) से तुम देवता बनते हो। यह नई रचना हो रही है। ब्रह्मा द्वारा तुमको बाप अपना बनाते हैं। गाया भी जाता है प्रजापिता ब्रह्मा। तुम उनके बच्चे ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ बने हो। गाया हुआ है, प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा मनुष्य सृष्टि की स्थापना होती है। तो यहाँ होगी ना।
**मेरे अति प्यारे भाइयो और बहनों आपने अपना किमती समय निकालकर इस पोस्ट को पढ़ा इसके लिए धन्यवाद।
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