** मेरे प्यारे भाइयों और बहनों आप कैसे हो जी ? **
**नोट = जरूरी इन बातो को आप स्वीकार कर लेवे।**
प्रश्नः- बाप(परमात्मा) ने बच्चों को इस नाटक का कौन सा गुह्य राज़ सुनाया है ?
उत्तर:-बच्चे - अभी यह नाटक(कलियुग का विनाश) खत्म होने वाला है इसलिए सभी आत्माओं को यहाँ(प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय) हाज़िर होना ही है। सब धर्मों की आत्मायें अभी यहाँ हाजिर होंगी क्योंकि सर्व का बाप(परमात्मा) यहाँ हाजिर हुआ है। सबको बाप के आगे सलामी भरने आना ही है। सब धर्म की आत्मायें मनमनाभव का मन्त्र लेकर जायेंगी। वह कोई मध्याजी भव के मन्त्र को धारण कर चक्रवर्ती(देवी-देवता) नहीं बनेंगी।
★(1). प्रजापिता ब्रह्मा का नाम तो गाया हुआ है। ब्रह्मा के बच्चों को जरूर बी. के. ही कहेंगे। जरूर पास्ट होकर गये हैं। आदि देव, आदि देवी को भी याद करते हैं, जो चीज़ होकर गई है वह फिर से जरूर होनी है। यह जानते हो, सतयुग होकर गया है, उसमें आदि सनातन देवी-देवताओं का राज्य था, जो अभी नहीं है।
★(2). पावन आत्मा 84 जन्म लेते-लेते अब पतित बन गई है। उस पतित आत्मा को फिर से पावन बनाना सो सिवाए बाप(परमात्मा) के और कोई कर न सके। एक का ही गायन है। सर्व का पतित-पावन, सर्व का सद्गति दाता, सर्व पर दया दृष्टि रखने वाला, सर्वोदया लीडर है। मनुष्य अपने को सर्वोदय लीडर कहलाते हैं, अब सर्व माना उसमें सभी आ जाते हैं। सर्व पर दया करने वाला तो एक ही बाप गाया जाता है, जिसको रहमदिल, ब्लिसफुल कहते हैं। बाकी मनुष्य सर्व पर क्या दया कर सकेंगे! अपने पर ही नहीं कर सकते तो औरों पर क्या करेंगे! यह दया करते हैं, अल्पकाल की। नाम कितने बड़े-बड़े रख दिये हैं।
★(3). बाप(परमात्मा) कहते हैं - तुम ही 84 जन्म लेते-लेते बहुत पतित बने हो। आजकल तो फिर खुद को शिवोहम् तत-त्वम् कह देते हैं या तो फिर कहते तुम परमात्मा के रूप हो, आत्मा सो परमात्मा। अब बाप आये हैं,सर्व का सद्गति दाता एक परमपिता परमात्मा ही है। शिव के मन्दिर अलग बनते हैं, शंकर का रूप ही अलग है। शिव निराकार, शंकर आकारी है। कृष्ण तो फिर साकार में है। साथ में राधे । तो सिद्ध हो कि यही फिर लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। कृष्ण तो द्वापर में गीता सुनाने आते ही नहीं हैं । पतित होते हैं कलियुग अन्त में, पावन होते हैं सतयुग में। तो जरूर संगम पर आयेंगे। यह बाप ही जानते हैं, वही त्रिकालदर्शी है। कृष्ण को त्रिकालदर्शी नहीं कहा जाता। वह थोड़ेही तीनों कालों का ज्ञान सुना सकते हैं। उनको सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान ही नहीं है। कहते हैं - छोटा बच्चा है, दैवी प्रिन्स-प्रिन्सेज कालेज में पढ़ने जाते हैं। आगे यहाँ भी प्रिन्स-प्रिन्सेज कालेज थे, अभी मिक्स हो गये हैं। कृष्ण प्रिन्स था और भी प्रिन्स-प्रिन्सेज होंगे। इकट्ठे पढ़ते होंगे। वहाँ(सतयुग) तो है ही वाइसलेस दुनिया।
★(5). आत्मायें सब बाप(परमात्मा) को पुकारती रहती हैं - ओ गॉड फादर। यह भी समझने की बात है। इस समय तुमको 3 बाप हैं। एक - शिवबाबा, दूसरा - लौकिक बाप और यह अलौकिक बाप प्रजापिता ब्रह्मा। बाकी सबको दो बाप हैं। लौकिक और पारलौकिक। सतयुग में सिर्फ एक ही लौकिक बाप होता है। पारलौकिक बाप को जानते ही नहीं। वहाँ(सतयुग)तो है ही सुख फिर पारलौकिक बाप को याद क्यों करें। दु:ख में सिमरण सब करते हैं। वहाँ(सतयुग,त्रेता ) आत्म-अभिमानी रहते हैं फिर देह-अभिमान में आ जाते हैं। यहाँ तुम आत्म-अभिमानी भी हो तो परमात्म-अभिमानी भी हो। शुद्ध अभिमान है कि हम बाप के सब बच्चे हैं, उनसे वर्सा(जायदाद-सतयुग,त्रेता की ) ले रहे हैं। वह(परमात्मा) बाप, शिक्षक, सतगुरू है।
**मेरे अति प्यारे भाइयो और बहनों आपने अपना किमती समय निकालकर इस पोस्ट को पढ़ा इसके लिए धन्यवाद।
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