** मेरे प्यारे भाइयों और बहनों आप कैसे हो जी ? **
**नोट = जरूरी इन बातो को आप स्वीकार कर लेवे।**
★(1) स्वर्ग कोई आसमान में नहीं है। यह भी किसको पता नहीं है। बिल्कुल ही तुच्छ बुद्धि हैं। कहते हैं फलाना स्वर्ग पधारा। परन्तु समझते कुछ भी नहीं हैं। स्वर्ग किसको कहा जाता, यह भी उनको पता नहीं है। संन्यासी लोग कहते ज्योति ज्योत समाया। कोई फिर कहते निर्वाणधाम(परमधाम) गया। निर्वाण भी तो लोक है ना। वह तो निवास स्थान है। ज्योति ज्योत में लीन होने की बात ही नहीं। ज्योति में मिल जाए तो फिर तो आत्मा ही खत्म हो जाए। खेल ही खत्म हो जाता है। इस ड्रामा से कोई भी आत्मा छूट नहीं सकती। कोई भी मोक्ष को पा नहीं सकते। न जीवनमुक्ति का अर्थ समझते हैं, न आत्मा-परमात्मा का अर्थ समझते हैं।
★(2) एक है हद का संन्यास, जो संन्यासी लोग घरबार छोड़ जाए जंगल में रहते हैं, पहले-पहले वह सतोप्रधान थे। फिर अब तमोप्रधान बने हैं तो जंगलों से लौटकर आए बड़े-बड़े महल बनाये हैं। इन संन्यासियों ने भी पवित्रता के आधार पर भारत को थमाया जरूर है। भारत की सेवा की है। यह संन्यास धर्म नहीं होता तो भारत एक-दम विकारों में जल मरता, पतित बन जाता। यह भी ड्रामा बना हुआ है
★(3) वहाँ स्वर्ग में कोई विकार(काम,क्रोध,मोह,लोभ,अहंकार) नहीं होते। अगर वहाँ भी विकार होता तो फिर स्वर्ग और नर्क में फर्क क्या हुआ? देवी-देवताओं की महिमा गाते हैं - सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण... हैं। भगवान आकर भगवान-भगवती ही बनायेंगे, सिवाए भगवान के कोई बना न सके। भगवान तो एक ही है। गाया भी जाता है - भगवान-भगवती की राजधानी। यथा राजा-रानी तथा प्रजा भी वही होगी। परन्तु भगवान-भगवती कहा नहीं जाता इसलिए कहा जाता है आदि सनातन देवी-देवता धर्म। यह किसको पता नहीं है।
★(4)मनुष्य थोड़ेही जानते हैं कि सतयुग में इन देवताओं को 16 कला सम्पूर्ण और 14 कला सम्पूर्ण क्यों कहते हैं? कुछ भी नहीं जानते हैं। यह भक्ति मार्ग के शास्त्र आदि फिर भी बनेंगे। यह हठयोग, तीर्थ यात्रा आदि सब फिर भी होंगे। परन्तु इससे क्या होगा? क्या हेविन में जायेंगे? नहीं
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