**आज का विचार = सफलता तभी मिलती है,जब हम कल्पना की ढ़ाचे में कर्म का रंग भी भरे
** मेरे प्यारे भाइयों और बहनों आप कैसे हो जी ? **
**नोट = जरूरी इन बातो को आप स्वीकार कर लेवे।**
★(1). श्रीमत गाई हुई है। श्रीमत भगवानुवाच। गीता में कृष्ण का नाम डाल दिया है परन्तु है शिवबाबा। उनके बाद ब्रह्मा फिर कृष्ण। श्रीमत कृष्ण की नहीं कहेंगे। श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ हमारा बाप है। पतित-पावन कृष्ण अथवा राधे आदि को नहीं कहेंगे। वह दैवीगुण वाले मनुष्य हैं। मनुष्य को पतित-पावन नहीं कहा जाता। सतयुग में ऐसे नहीं कहेंगे पतित-पावन आओ। पतितों को पावन बनाने वाला एक ही बाप है, जिसकी श्रीमत(राजयोग) पर तुम(ब्रह्माकुमार/कुमारी) चल रहे हो। क्या आप परमात्मा की श्रीमत जानने के इच्छुक है तो आज ही संपर्क करे प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय या पीस आफ मांइड चैनल(pmtv) देखिए ।
★(2). भगवानुवाच भी लिखा हुआ है परन्तु कृष्ण का नाम डाल दिया है। कृष्ण भी सभी मनुष्यों से ऊंच ते ऊंच ठहरा ना। फर्स्ट प्रिन्स है। कृष्ण का नाम देते हैं, नारायण का क्यों नहीं! कृष्ण है बालक। छोटेपन से बालक सतोप्रधान होता है। फिर बचपन से युवा, फिर वृद्ध अवस्था आती है। बच्चों की ही महिमा करते हैं क्योंकि पवित्र हैं ना। बालक ब्रह्मज्ञानी समान कहते हैं। बच्चे से कोई पाप नहीं होता है। तो कृष्ण भी छोटा बच्चा होने के कारण उनका बर्थ डे मनाते हैं। फिर भी कृष्ण को द्वापर में दिखा दिया है।
**मेरे अति प्यारे भाइयो और बहनों आपने अपना किमती समय निकालकर इस पोस्ट को पढ़ा इसके लिए धन्यवाद।
अगर पोस्ट पढ़ने के बाद आपके मन में क्या प्रतिक्रिया हुई कृप्या कमेंट कीजिए और अगर आपको लगे कि इस पोस्ट के विचार किसी के काम आ जाये तो कृप्या इसे शेयर कीजिए। अच्छा मिलते रहेंगे। = सहदृय से धन्यवाद
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