** मेरे प्यारे भाइयों और बहनों आप कैसे हो जी ? **
★(1) आत्मा ही इस शरीर द्वारा
पढ़ती है, चलती है, विकर्म करती है इसलिए पतित-आत्मा, पाप-आत्मा कहा जाता है। आत्मा
ही सब कुछ करती है। इस समय सब मनुष्य देह-अभिमानी हैं, मैं आत्मा हूँ समझने बदले, समझते
हैं मैं फलाना हूँ। यह व्यापार करता हूँ। यह फलाने कामी, क्रोधी हैं। शरीर का ही नाम
लेते हैं। इसको कहा जाता है देह-अभिमानी दुनिया, उतरती कला की दुनिया। सतयुग में ऐसे
नहीं होता। वहाँ देही-अभिमानी(अपने को आत्मा समझना) होते हैं।
★(2) सभी आत्मायें परमधाम
से आकर, शरीर धारण कर पार्ट बजाती हैं। आत्माओं का असुल घर है परमधाम। उन एक्टर्स का
तो घर यहाँ ही होता है। सिर्फ ड्रेस बदली कर आकर पार्ट बजाते हैं। तो बाप(परमात्मा) बैठ समझाते हैं, तुम आत्मायें हो। बाप तो बच्चे-बच्चे ही कहेंगे। संन्यासी
बच्चे-बच्चे नहीं कहेंगे।
★(3) बाप कहते हैं - मैं(परमात्मा) पतित-पावन तुम सभी आत्माओं का बाप हूँ, जिसको तुम गॉड फादर कहते हो।
गॉड फादर तो निराकार है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को भी गॉड फादर नहीं कहेंगे। उनमें
भी आत्मा है परन्तु उनको कहते हैं ब्रह्मा देवता नम:, विष्णु देवता नम:... देवतायें
क्या करते हैं? यह किसको पता नहीं है।
इन्सालवेन्ट(दिवालियापन) बन पड़े हैं। भारतवासियों के लिए ही कहते हैं, तुम कितने साहूकार समझदार थे। इन लक्ष्मी-नारायण का सारे विश्व पर राज्य था, जिसको कोई लूट न सके। वहाँ कोई पार्टीशन आदि नहीं होती। यहाँ तो कितनी पार्टीशन हैं। आपस में टुकड़े-टुकड़े पर लड़ते रहते हैं।
★(5) नास्तिक वास्तव में
उनको कहा जाता है जो अपने बाप को और रचना के आदि-मध्य-अन्त को नहीं जानते हैं। इस समय
सब निधन के आरफन बन पड़े हैं। घर-घर में झगड़ा है, एक दो को मारने में देरी नहीं करते
हैं, इसलिए इसको नास्तिकों की दुनिया कहा जाता है, बाप(परमात्मा) को न जानने वाले। तुम हो जानने वाले। अभी तुम समझते हो कि हम पत्थरबुद्धि
थे, बाप हमको पारसबुद्धि बना रहे हैं और कोई तकलीफ की बात नहीं। बाप सिर्फ कहते हैं
एक घण्टा पढ़ो(प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में या 7 दिन का कोर्स करके अपने घर पर भी पढ़ सकते
हो)। अपने को आत्मा समझ मुझ बाप(परमात्मा) को याद करो।
★(7) बाप(परमात्मा) ही खिवैया है ना। गाते भी हैं नईया मेरी पार लगाओ। यह सब नईयायें हैं, खिवैया एक बाप ही है। यह शरीर यहाँ ही छोड़ देंगे। बाकी आत्माओं को पार ले जायेंगे शान्तिधाम। वहाँ से फिर भेज देंगे सुखधाम। परमपिता परमात्मा को ही खिवैया कहा जाता है।
★(8) बाप(परमात्मा) की ही महिमा गाते हैं अनेक प्रकार से। अभी तुम पवित्र बन पवित्र दुनिया के मालिक बनते हो। श्री श्री शिवबाबा आये हैं श्रेष्ठ बनाने। खुद भगवान कहते हैं यह भ्रष्टाचारी दुनिया है। अभी तुम परमपिता परमात्मा की श्रीमत पर चल श्रेष्ठाचारी बनते हो। कितनी यह गुप्त रमणीक बातें हैं, जो तुम बच्चों(ब्रह्माकुमार/कुमारी) को ही समझ में आती हैं। औरों को समझ में आयेंगी ही नहीं।
*मेरे अति प्यारे भाइयो और बहनों आपने अपना किमती समय निकालकर इस पोस्ट को पढ़ा इसके लिए धन्यवाद। *अगर पोस्ट पढ़ने के बाद आपके मन में क्या प्रतिक्रिया हुई कृप्या कमेंट कीजिए और अगर आपको लगे कि इस पोस्ट के विचार किसी के काम आ जाये तो कृप्या इसे शेयर कीजिए। अच्छा मिलते रहेंगे। = सहदृय से धन्यवाद
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