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Sunday, May 16, 2021

आज की मुरली का सार 17.05.2021 =पारलौकिक बाप,भक्ति,प्रजापिता ब्रह्मा,गीता,प्रेरणा,स्वर्ग,माशूक,विष्णु

                          ** मेरे प्यारे भाइयों और बहनों आप कैसे हो जी ? **

**नोट = जरूरी इन बातो को  आप स्वीकार कर लेवे।**




★(1)कोई तुम्हे कहे  तुम्हारा बाप कौन है? तो झट देह के बाप का नाम बतायेंगे। अच्छा - अब देही(आत्मा के ) के बाप का नाम बताओ। तो कोई कृष्ण का, कोई हनूमान का नाम लिखेंगे या तो लिखेंगे - हम नहीं जानते। अरे, तुम लौकिक बाप(शरीर के पिताश्री) को जानते हो और पारलौकिक बाप(आत्मा के पिताश्री) जिनको तुम हमेशा दु:ख में याद करते हो, उनको नहीं जानते हो! कहते भी हैं, हे भगवान रहम करो। हे भगवान एक बच्चा दो। माँगते हो ना।

★(2)भक्ति करते ही हैं - भगवान से मिलने के लिए। यज्ञ, तप, दान-पुण्य आदि करना यह सब भक्ति है। सब एक भगवान को याद करते हैं। बाप कहते हैं - मैं तुम्हारा पतियों का पति हूँ, बापों का बाप हूँ। सब बाप भगवान को याद जरूर करते हैं। आत्मायें ही याद करती हैं। भल कहते भी हैं, भ्रकुटी के बीच में चमकता है अजब सितारा... परन्तु यह बिगर समझ के ऐसे ही कह देते हैं। रहस्य का कुछ भी पता नहीं। तुम आत्मा को ही नहीं जानते हो तो आत्मा के बाप को कैसे जान सकेंगे। दीदार तो होता है भक्ति मार्ग वाला। भक्ति मार्ग में पूजा के लिए बड़ा-बड़ा शिवलिंग रख देते हैं क्योंकि अगर बिन्दी का रूप दिखायें तो कोई समझ न सके। यह है महीन बात। परमात्मा जिसको अखण्ड ज्योति स्वरूप कहते हैं, मनुष्य कहते हैं उनका कोई बहुत बड़ा रूप है। ब्रह्म समाजी मठ वाले ज्योति को परमात्मा कहते हैं। दुनिया में यह किसको पता नहीं है कि परमपिता परमात्मा बिन्दी है, तो मूँझ पड़े हैं।


★(3)परमात्मा को ब्रह्मा द्वारा स्थापना(सतयुग, त्रेता) करानी है। परमात्मा खुद कहते हैं - मैं इस(प्रजापिता ब्रह्मा) द्वारा तुमको सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज़ बताता हूँ। गाते भी हैं - ब्रह्मा द्वारा स्थापना। यह नहीं जानते कि नई दुनिया को विष्णुपुरी कहा जाता है अर्थात् विष्णु के दो रूप राज्य करते थे। किसको पता नहीं है कि विष्णु कौन है!!!? 


★(4)मेरे प्यारे भाइयो और बहनो  शिवबाबा कहते हैं - मुझे याद करो। गीता में कृष्ण भगवानुवाच उल्टा लिख दिया है।  भगवान तो निराकार, पुनर्जन्म रहित है। बस यही भूल है।

★(5)अब परमात्मा समझाते हैं - तुम अपने को शरीर मत समझो। घड़ी-घड़ी अपने को आत्मा निश्चय करो। आत्म-अभिमानी बनो। परमात्मा भी निराकार है। यहाँ(प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय) भी शरीर(प्रजापिता ब्रह्मा) लेना पड़ता है - समझाने के लिए। बिगर शरीर तो समझा नहीं सकेंगे। तुमको तो अपना शरीर है, परमात्मा फिर लोन लेते हैं। बाकी इसमें प्रेरणा आदि की बात ही नहीं। परमात्मा खुद कहते हैं - मैं यह शरीर(प्रजापिता ब्रह्मा) धारण कर बच्चों को पढ़ाता(राजयोग) हूँ क्योंकि तुम्हारी आत्मा जो अभी तमोप्रधान(मनुष्य) बन गई है, उनको सतोप्रधान(देवी,देवता) बनाना है। गाते भी हैं, पतित-पावन आओ, परन्तु अर्थ नहीं समझते।


★(6)भारत खण्ड ही स्वर्ग होगा। परमपिता परमात्मा ही आकर हेविन(स्वर्ग,सतयुग) की स्थापना करते हैं। अभी हेल(नर्क,कलियुग) है। प्राचीन भारत खण्ड ही है जहाँ देवताओं का राज्य था, अब नहीं है। उन्हों के यहाँ मन्दिर हैं, चित्र हैं। तो भारत की ही बात हुई। यह कोई भी भारतवासी की बुद्धि में नहीं आता कि भारत स्वर्ग था, यह लक्ष्मी-नारायण मालिक थे और कोई खण्ड नहीं था। अब तो अनेक धर्म आ गये हैं। भारतवासी धर्म-भ्रष्ट, कर्म-भ्रष्ट बन गये हैं। कृष्ण को श्याम-सुन्दर कह देते हैं परन्तु अर्थ नहीं समझते। बरोबर यह सांवरा था ना। कहते हैं कृष्ण को सर्प ने डसा तो सांवरा हो गया। अब वह तो सतयुग का प्रिन्स था, कैसे काला हो गया।

 

★(7)मेरे प्यारे भाइयो और बहनो जरा समझो जी  तुम आधाकल्प(द्वापर, कलियुग) के आशिक हो, एक माशूक(परमात्मा) के। भक्ति मार्ग में सभी उनको याद करते हैं तो आशिक ठहरे ना। परन्तु माशूक को पूरा जानते नहीं हैं। याद बहुत प्यार से करते हैं, हे माशूक तुम जब आयेंगे तो हम सिर्फ आपको ही याद करेंगे और सबसे बुद्धियोग तोड़ आपके साथ जोड़ेंगे। ऐसे तो गाते थे ना, परन्तु बाप(परमात्मा) से हमको क्या वर्सा(जायदाद)  मिलता है, यह किसको भी पता नहीं है।


★(8)यहाँ(प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय) बाप(परमात्मा) कहते हैं - मैं गुप्त आता हूँ, खुदा-दोस्त की कहानी सुनी है ना। अब यह पुल है कलियुग और सतयुग के बीच का, उस पार जाना है। अब खुदा तो बाप है, दोस्त भी है। माता, पिता, शिक्षक का पार्ट भी बजाते हैं। यहाँ(प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय) तुमको साक्षात्कार होता है तो जादू-जादू कह देते हैं। साक्षात्कार तो नौधा भक्ति वालों को भी होते हैं, बहुत तीखे भक्त होते हैं। दर्शन दो नहीं तो हम गला काटते हैं, तब साक्षात्कार होता है, उनको नौधा भक्ति कहा जाता है। यहाँ नौंधा भक्ति की बात नहीं। घर में बैठे-बैठे भी बहुतों को साक्षात्कार होते रहते हैं। दिव्य दृष्टि की चाबी मेरे(परमात्मा के) पास है। अर्जुन(ज्ञान अर्जन करने करने वाली एक अर्जुन नही हम सभी विश्व के मनुष्य की आत्मा की बात) को भी मैंने दिव्य दृष्टि दी ना। यह विनाश(कलियुग का) देखो, अपना राज्य(सतयुग,त्रेता) देखो। अब मामेकम्(अपने को आत्मा समझ मुझ परमात्मा को मन से याद करो) याद करो तो यह(देवी,देवता) बनेंगे। अभी तुम समझते हो - विष्णु कौन है? मन्दिर बनाने वाले खुद नहीं जानते। विष्णु द्वारा पालना, 4 भुजा का अर्थ ही है - 2 भुजा मेल की, 2 फीमेल की। विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण हैं। परन्तु कुछ भी समझते नहीं हैं। किसका भी ज्ञान नहीं है। न शिवबाबा का, न विष्णु का।



**मेरे अति प्यारे भाइयो और बहनों आपने अपना किमती समय निकालकर इस पोस्ट को पढ़ा इसके लिए धन्यवाद। 

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