** मेरे प्यारे भाइयों और बहनों आप कैसे हो जी ? **
**नोट = जरूरी इन बातो को आप स्वीकार कर लेवे।**
★(1).शिवबाबा(प्रजापिता ब्रह्मा) ने इसमें प्रवेश कर एडाप्ट किया है। वही आत्माओं को पावन बनाते हैं, आत्मा ही पतित बनी है। इस कारण शरीर भी पतित मिलता है। सोने में चांदी, ताम्बे, लोहे की खाद डालते हैं तो आत्मा में भी खाद पड़ती है। असुल में आत्मा पवित्र मुक्तिधाम(परमधाम) में रहने वाली है, जहाँ शिवबाबा भी रहते हैं। अब शिवबाबा, प्रजापिता ब्रह्मा - एक को बाप, एक को दादा कहेंगे। यह तो तुम जानते हो सब मनुष्य-मात्र शिव की सन्तान हैं। शिववंशी फिर हैं ब्रह्माकुमार कुमारियां।
★(2).विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण हैं, यह मनुष्य नहीं जानते। जो भक्ति करते हैं उनको दो बाप(1.आत्माओ के पिताश्री) [2.शरीर के पिताश्री] जरूर हैं। सतयुग में एक बाप[शरीर के पिताश्री] होता है। वहाँ[सतयुग] ऐसे नहीं कहते कि हे परमपिता परमात्मा, दु:ख हर्ता सुख कर्ता आओ। वहाँ तो देवी-देवताओं का राज्य था। वे कभी हे गॉड फादर, लिबरेटर नहीं कहेंगे। वहाँ कोई पतित दु:खी होते ही नहीं, जो पतित-पावन को बुलायें।
★(3).भारत अमर-लोक था तब देवताओं का राज्य था। सीढ़ी उतरते-उतरते मृत्युलोक के आकर मालिक बने हैं। कहते हैं ना - हमारा भारत, तो प्रजा भी मालिक हुई ना। तुम भी कहेंगे हमारा भारत। हम भारत के मालिक थे परन्तु नर्कवासी। देवतायें कहेंगे हम स्वर्गवासी हैं।
★(4).जब चन्द्रवंशी का राज्य होता है तो सूर्यवंशी का राज्य पास्ट हो गया। ट्रांसफर होकर चन्द्रवंशियों को मिलता है फिर वैश्यवंशियों को मिलता है।
★(5).कहते हैं ओ गॉड फादर। अच्छा, उनका आक्यूपेशन पता है? नाम, रूप, देश, काल बताओ। उनकी जीवन कहानी बताओ। अगर नहीं जानते हो तो नास्तिक ठहरे। रचयिता और रचना के आदि-मध्य-अन्त को नहीं जानते। वह है ही पतित दुनिया। सतयुग पावन दुनिया, कलियुग को पतित दुनिया कहा जाता है। इस समय बिल्कुल तमोप्रधान हैं, इनको रौरव नर्क कहा जाता है। इनकी भी स्टेज़ेस होती हैं। द्वापर से नर्क बनना शुरू होता है फिर वृद्धि को पाता है।
★(6).विष्णुपुरी में रहने वालों को वैष्णव कहा जाता है। वैष्णव पवित्र को कहा जाता है। राधे-कृष्ण का अलग मन्दिर। लक्ष्मी-नारायण का अलग मन्दिर बना दिया है। भारतवासी जानते ही नहीं कि उन्हों में क्या फ़र्क है। राधे-कृष्ण ही लक्ष्मी-नारायण बनते हैं, यह किसको भी पता नहीं।
★(7).शंकराचार्य तो कलियुग में आते हैं। संन्यासियों की डिनायस्टी सतयुग में तो हो नहीं सकती। सब भगवान के बच्चे हैं तो स्वर्गवासी होने चाहिए। परन्तु स्वर्गवासी तो सब होते नहीं हैं, सिर्फ देवतायें ही होते हैं। अभी तुम ब्राह्मण वंशी बने हो फिर देवता बनेंगे।
**मेरे अति प्यारे भाइयो और बहनों आपने अपना किमती समय निकालकर इस पोस्ट को पढ़ा इसके लिए धन्यवाद। *अगर पोस्ट पढ़ने के बाद आपके मन में क्या प्रतिक्रिया हुई कृप्या कमेंट कीजिए और अगर आपको लगे कि इस पोस्ट के विचार किसी के काम आ जाये तो कृप्या इसे शेयर कीजिए। अच्छा मिलते रहेंगे। = सहदृय से धन्यवाद
आपकी मुरली मुझे ठीक नहीं लगी । क्योंकि
ReplyDeleteअडाप्ट करना उसको कहते हैं जो अपना नहीं है लेकिन अच्छी परवरिश के लिए अपना लिया जाए ।जब सभी आत्माओं का पिता परमपिता ब्रह्मा है तो फिर अडाप्ट करना कैसे हुआ ?
विष्णु को ही सर्वेश्वर मानने और पूजने वाले वैष्णव कहलाते हैं। विष्णु पुरी में रहने से वैष्णव नहीं होते । क्या आप बता प्रमाण सहित बता सकते हैं कि विष्णु पुरी कहां है ?
आपने लिखा कि शंकराचार्य कलियुग में आते हैं । लेकिन शंकराचार्य तो ईसा से ५०८वर्ष पहले हुए थे । इस प्रकार शंकराचार्य को हुए २५२८वर्ष हो चुके । जबकि कलियुग का समय तो है ही १२५०वर्ष । ऐसे में शंकराचार्य का कलियुग में होना कैसे सम्भव है ?
जरूरी नहीं मेरे दिये गए उत्तरो को आप स्वीकार कर ले ।
Delete1.प्यारे भाई जी आपने 1 प्वाईट ठीक से नही पढ़ा सभी आत्माओं के पिता परमात्मा शिव है उसमें ऐसा लिखा शिव बाबा ब्रह्या के तन में आकर ज्ञान देते है।
2. वैष्णव उनको कहते है जो 5 विकार काम,क्रोध,मोह,लोभ,अंहकार से मुक्त हो जाति से क्या होता है । विष्णुपुरी सतयुग को कहा जाता है — राधा और कृष्ण का स्वयंवर होता है होता है वही फिर बड़े होकर लक्ष्मी नारायण बनते है , आपने देखो होगा कि विष्णु की चार भुजा बताते है तो दो लक्ष्मी की दो नारायण है कि ऐसा हो सकता है । और वैसे शास्त्रो में लक्ष्मी नारायण बचपन नही बताया है और इसकी जानकारी परमात्मा शिव ब्रह्या के तन में आकर बता सकते है।
3. शंकराचार्य का उत्तर समझाने डिटेल है इससे अच्छा आप प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय में जाकर समझे।