** मेरे प्यारे भाइयो और बहनो आप कैसे हो ?
** ऐसे होते हैं निराकार 'शिव' प्रगट**
**नोट = जरूरी इन बातो को आप स्वीकार कर लेवे।**
**शिव पुराण में भी लिखा है कि भगवान शिव ने कहा - 'मैं ब्रह्मा जी के ललाट से प्रकट होऊंगा।' आगे लिखा है कि- 'इस कथन के अनुसार समस्त संसार पर अनग्रह करने के लिए शिव ब्रह्मा जी के ललाट से प्रकट हुए और उनका नाम 'रूद्र' हुआ।'
शिव पुराण में यह भी लिखा है कि 'जब ब्रह्मा जी द्वारा सतयुगी सृष्टि रचने का कार्य तीव्र गति से नहीं हुआ और इस कारण वह निरुत्साहित थे, तब शिव ने ब्रह्मा जी की काया में प्रवेश किया, ब्रह्मा जी को पुनर्जीवित किया और उनके मुख द्वारा सृष्टि रची।' शिव पुराण में अनेक बार यह उल्लेख आया है कि भगवान शिव ने पहले प्रजापिता ब्रह्मा को रचा और फिर उन द्वारा सतयुगी सृष्टि को रचा। इस पौराणिक उल्लेख का भी यह भाव है कि परमपिता परमात्मा शिव प्रजापिता ब्रह्मा के मस्तिष्क ललाट में अवतरित हुए और उनके मुख द्वारा ईश्वरीय ज्ञान तथा सहज राजयोग की शिक्षा देकर उन्होंने संसार का कल्याण किया। महाभारत में लिखा है कि भगवान ने ब्रह्मा के तन में प्रविष्ट होकर ज्ञान दिया और

सतयुग की पुनः स्थापना की। स्वयं गीता में भी लिखा है कि मैंने पहले यह ज्ञान विवस्वान को दिया था। सोचने की बात है कि सृष्टि के आदि में वह आदिम वक्ता कौन था? ब्रह्मा ही को तो 'आदि देव' और शिव ही को 'स्वयंभू अथवा आदि नाथ' कहा गया है। ध्यान देने की बात है कि आद्य शंकराचार्य ने भी अपने भाष्य में इस श्लोक की व्याख्या करते हुए कहा है कि भगवान ने नई सृष्टि रचने के समय 'सर्ग' ही यह ज्ञान दिया था तथा योग सिखाया था। स्पष्ट है कि तब ज्योतिस्वरूप परमात्मा ने प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा ही यह ज्ञान दिया होगा। इसलिये ही भारत के प्रायः सभी प्राचीन धर्म-ग्रन्थों में ज्ञान के उद्गम के साथ ब्रह्मा और शिव ही का नाम जुड़ा हुआ है। स्वयं महाभारत में भी लिखा है कि भगवान ने नई सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा की बुद्धि में प्रवेश किया। परंतु चूंकि बाद में वैष्णवों ने महाभारत को वैष्णव ग्रन्थ बनाने के यत्न किये, इसलिए उन्होंने लिख दिया कि नारायण ने ब्रह्मा की बुद्धि में प्रवेश किया। परंतु इस श्लोक में जो 'प्रभुख्यतः' शब्द हैं, वे ही इस बात को सिद्ध करते हैं कि ज्योतिस्वरूप, अविनाशी परमात्मा ही के प्रवेश होने के बारे में कहा गया है। नारायण तो स्वयं ही विवस्वान थे, अर्थात् सूर्यवंशी थे। गीता ज्ञान जानने बालों में ब्रह्मा ही को भागवत् आदि ग्रन्थों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। तब अवश्य ही ब्रह्मा को परमात्मा ही ने यह ज्ञान दिया होगा और उन्हें माध्यम बनाकर अन्य आत्माओं को भी गीता ज्ञान सुनाया होगा।
** इस शिवरात्री पर क्या शुद्ध संकल्प करे:-
**जैसे शिवरात्री पर मंदिरो में जाकर शिवबाबा पर लोटी चढ़ाते, जागरण करते ऐसे ही हम भी अपनी सुक्ष्म कमी कमजोरियो की लोटी शिव बाबा पर चढ़ाकर यही शुद्ध संकल्प करें कि हम देह अभिमानी(शरीर के घंमड) से मुक्त रहेगे | और सद्गुणो से अपनी जीवन को सजा लेना है।
सदैव हमें एक दूसरे के गुण ही दिखाई दें। जिस तरह परमात्मा दूसरो के अवगुणो को अपने चित्त पर नहीं रखते उसी प्रकार हमें भी ऐसा अपना स्वभाव बनाना चाहिए।
**मेरे अति प्यारे भाइयो और बहनों आपने अपना किमती समय निकालकर इस पोस्ट को पढ़ा इसके लिए धन्यवाद।
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NICE THOUGHTS JEE
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