** मेरे प्यारे भाइयो और बहनो आप कैसे हो ?
**ज्ञान-गुलाल से होली खेलो – होली के दिल एक-दूसरे पर सूखा रंग डाल कर गले मिलते हैं | इस मिलन को ‘मंगल-मिलन' कहा जाता है। परन्तु मैं देखता हूँ कि होली खेलने वाले इस प्रथा की आड़ में एक -दूसरे को जूतों की माला तथा हृदृय में ईर्ष्या-द्वेष होने के कारण अनेक प्रकार से बदले लेते हैं |मिलन इसलिए होता है कि मिलने वाले अपने पुराने भेद-भावों को भूलकर, अब मिलकर एक-दूसरे के मंगल(कल्याण) की सोचेंगे किंतु पुराने मन में युक्तियुक्त रीति से , परिवर्तन न हुआ होने के कारण इस मिलन कोई विशेष महत्व नहीं। रह जाता | इससे शिक्षा लेकर मैं ज्ञान-गुलाल से होली खेलता हूँ। मैं स्वयं भी ज्ञान-केसरिया लगवाता हूँ और दूसरों को भी लगाता हूँ क्योंकि ज्ञान से मनुष्यों के मन में शुद्धि आ जाती है। ज्ञान द्वारा प्रभु-मिलन की आत्मा के लिए मंगल-मिलन है। इससे सब द्वेष-भाव । सदा के लिए मिट जाते है।
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NICE THOUGHTS JEE
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