** मेरे प्यारे भाइयों और बहनों आप कैसे हो जी ? **
**नोट = जरूरी इन बातो को आप स्वीकार कर लेवे।**
@नवरात्री पर्व की शुभ कामनाए - जय माता दी अष्ट-सिद्धियाँ, अष्ट-शक्तियाँ- अष्ट- शक्तियों का ही दूसरा रूप हैं। ‘सिद्धि’ और ‘शक्ति’ पर्यावाची शब्द हैं।
(2) लघिमा = दूसरी
सिद्ध बतलाई जाती है जिसका शाब्दिक अर्थ है शरीर का छोटा हो जाना। इसका एक उदाहरण भक्तिमार्ग
के शास्त्र रामायण में हनुमान का लंका में प्रवेश करते समय बिल्ली जितना छोटा शरीर
धारण करना बतलाया जाता है ताकि सुरक्षा प्रहरियों की नजर से बचा जा सके। वास्तव में
राजयोग में हम सीखते हैं कि यह स्थूल रूप से आकार परिवर्तन की बात न होकर सूक्ष्म रूप
से स्वयं को समेटने की शक्ति का ही नाम है। ऐसी स्थिति तब प्राप्त की जा सकती है जब
मनुष्य 5 विकारों (रावण = काम, क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार) से, समाजिक संबंधों की अधिकता या मकड़जाल से, अनावश्यक कामनाओं से और व्यर्थ संकल्पों से
मुक्त हो। ऐसी स्थिति को प्राप्त मनुष्य का लौकिक समाज में अन्य मनुष्यों से लेन—देन
या हिसाब—किताब का कर्मों का लेखा—जोखा सिमटता जाता है। वह समाज में रहते हुए भी साक्षी
(बिना प्रभाव के रहना) भाव से अपने कत्त्व्यों का निर्वाह करता रहता है। एक प्रकार
से वह अन्य मनुष्यों के लिए लघु(लघिमा) होता जाता है।
*परमात्मा शिव
से प्राप्त ज्ञान हमें 'समेटने की शक्ति ' प्रदान करता है जो कि वास्तव में 'लघिमा'
के समकक्ष है। = राजयोग नि:शुल्क सीखने के लिए आज ही संपर्क करे :— =(प्रजापिता
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(3) अष्ट सिद्धि
के रूप में 'प्राप्ति' का अर्थ व्यापक है। एक तरफ तो अष्ट सिद्धि प्राप्त करने की बात
की जाती है और दूसरी तरफ 'प्राप्ति को इनमें से एक सिद्ध बता दिया जाता है। इसका भाव
यह है कि सामान्य से हट कर कुछ असामान्य या विशिष्ट प्राप्त करना है। आज साधारण मनुष्य
नश्वर धन की प्राप्ति के लिए ही प्रेरित रहता है और अविनाशी ज्ञान, गुण एवं श्रेष्ठ
संस्कारों के पीछे छिपी अखुट प्राप्ति को देख नही पा रहा है। प्राप्ति का एक अर्थ भाग्य
प्राप्त होने से भी है जो श्रेष्ठ कर्मों से ही बनता है। श्रीमत के आधार से प्राप्त
'परखने की शक्ति' सत्य का स्पष्ट बोध कराती है। परमात्मा शिव ने ब्रह्या के मुख से
महावाक्य उच्चारे हैं वही 'श्रीमत' हैं परन्तु कुछ भाग्यशाली मनुष्य ही ब्रह्या और
उनमें अवतरित शिव को पहचान पाते हैं।
'परखने की
शक्ति' आत्मिक शक्ति है और 'प्राप्ति' उस शक्ति के उपयोग का फल है। जिस प्रकार एक वृक्ष
धरती में मौजूद असंख्य तत्वों में से आवश्यक तत्वों को ग्रहण कर फल का निर्माण करता है, उसी प्रकार, एक बुद्धिमान मनुष्य विभिन्न विकल्पों
को त्याग कर, उपयोगी संकल्पों को परख फिर लक्ष्य रूपी फल की प्राप्ति कर लेता है। इस
प्रकार, 'प्राप्ति' फल भी है और सिद्ध भी । ''ईश्वरीय सत्य ज्ञान को नि:शुल्क प्राप्त
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