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Sunday, April 11, 2021

*शुभ नवरात्री= [1]चौथी अष्ट सिद्धि 'प्राकाम्यम' [2]पॉचवीं अष्ट सिद्धि 'महिमा'

                   ** मेरे प्यारे भाइयों और बहनों आप कैसे हो जी ? **

                 **नोट = जरूरी इन बातो को  आप स्वीकार कर लेवे।**


@नवरात्री पर्व की शुभ कामनाए - जय माता दी अष्ट-सिद्धियाँ, अष्ट-शक्तियाँ = अष्ट- शक्तियों का ही दूसरा रूप हैं। ‘सिद्धि’ और ‘शक्ति’ पर्यावाची शब्द हैं।

 (4) चौथी अष्ट सिद्धि 'प्राकाम्यम' बतलाई जाती है जिसका अर्थ है इच्छित वस्तु का तुरन्त प्राप्त होना। इच्छा मात्र से कोई भी वस्तु यदि तुरन्त प्राप्त हो जाए तो मनुष्य शारीरिक श्रम या कर्म करना ही छोड़ दे। अच्छे कर्म से ही फल अच्छा प्राप्त होता है। परन्तु अच्छे कर्म करने में सभी समर्थ नहीं हो पाते क्योंकि श्रेष्ठ कर्म में विघ्न—बाधायें काफी आती हैं और उनका सामने करने का पुरूषार्थ कुछ ही मनुष्य दिखा पाते हैं। इस प्रकार, 'प्रकाम्यम' रूपी सिद्धि 'सामने करने की शक्ति' की प्रारब्ध(प्राप्ति) है अर्थात् सामने  करने की शक्ति् स्त्रोत है और 'प्रकाम्यम' उसकी रचना है।

  ** मान लीजिए = कोई व्यक्ति शिव द्वारा दिए जा रहे 'ज्ञान(राजयोग)' को प्रतिदिन सुनता है और मनन—चिन्तन कर धारण करता है। उसके परिवार में अचानक किसी की मृत्यु हो जाती है। ऐसे में उसकी मानसिक अवस्था 'अचल—अडोल' स्थिति को तुरन्त प्राप्त (प्रकाम्यम) कर पूरे परिवार को इस दु:ख का सामना करने की  शक्ति् देती है । या वह खुद मृत्यु के कगार  पर हो और निडरता से परमात्मा की स्मृति में रहते हुए मृत्यु का सामना करता है। तो यह अद्भुत सामना करने की शक्ति् उसने तत्काल प्राप्त नहीं कर ली बल्कि ईश्वरीय सत्य ज्ञान को लम्बे समय तक जीवन में अपना कर उसने इसका सही समय पर उपयोग। 


(5) पॉचवीं सिद्धि 'महिमा' =  बतलाई गई जिसका अर्थ, गुणों का महत्तव के गुणगान से है। अच्छे कर्मोे से यश या महिमा समाज में स्वत: होती है। इसके लिए जीवन आदर्शों पर आधारित हो और जन—कल्याण की भावना से परिपूर्ण हो। महिमा की सिद्धि के लिए अलग से कोई विशेष विधि या कर्मकाण्ड नहीं है बल्कि नीतिगत व अच्छे जनकल्याणकारी जीवन का होना ही महिमा योग्य बना देता है। अत: विषम परिस्थितियों से भरे इस समाज में, सभी की शुभ भावनाओं का पात्र बनना आवश्यक है। यह तब सम्भव है जब शुभचिन्तकों के अलावा आलोचकों व विरोधियों को भी अपना मित्र व हितैषी बना लिया जाए । इसके लिए उनकी आलोचनाओं व प्रारम्भिक तिरस्कार या विरोध को 'समा लेने की शक्ति' होनी  चाहिए। महात्मा गाँधी, मदर टेरेसा,गुरू नानक,जीजस क्राईस्ट आदि महापुरूषों के व्यक्तिव के निमार्ण में 'समाने की शक्ति' का महत्तपूर्ण योगदान था। उन्होंने इस शक्ति से अपने विरोधियों का दिल जीता और महिमा योग्य बने। परन्तु इस शक्ति से सम्पन्न बनने के लिए विशाल हदृय, अचल—अडोल स्थिति समद्रष्टा तथा प्रेम—दया का दरिया बनना जरूरी है, जो 'राजयोग' की साधना से ही सम्भव है।


**मेरे अति प्यारे भाइयो और बहनों आपने अपना किमती समय निकालकर इस पोस्ट को पढ़ा इसके लिए धन्यवाद। 

अगर पोस्ट पढ़ने के बाद आपके मन में क्या प्रतिक्रिया हुई कृप्या कमेंट कीजिए और अगर  आपको लगे कि इस पोस्ट के विचार किसी के काम आ जाये तो कृप्या इसे शेयर कीजिए। अच्छा मिलते रहेंगे। = सहदृय से धन्यवाद


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