** मेरे प्यारे भाइयों और बहनों आप कैसे हो जी ? ** **नोट = जरूरी इन बातो को आप स्वीकार कर लेवे।**
**अध्यात्म की नजर से हनुमान
*१,- मौल्ड होने की शक्ति।
.2.- अथक सेवा - समुद्र लाँघकर जाते हुए हनुमान को रास्ते में मैनाक पर्वत ने भी नम्र निवेदन किया कि थोड़ा विश्राम कर लीजिए और कंदमूल फल खा लिजिए परन्तु ईश्वरीय कार्य में तत्पर हनुमान जी ने कहा - 'राम काज किए बिना मोहे कहाँ
3.- हनुमान जी की उड़ान - ईश्वरीय कार्य इस प्रकार की उंमग -उत्साह की उड़ान के बिना नही रह सकता।
४.- दृढ़ समानधारी - हनुमान जी को रावण के दरबार में जब आसन नही मिला तो उन्होंने पूंछ लपेटकर इतना ऊँचा आसन बना लिया जो रावण को भी देखने के लिए ऊपर मुँह करना पड़ा। झुकाने वाले को खुद झुकना पड़ता है, यह शाश्वत है|
५.-अटूट ईवटीय प्रेम - हनुमान जी के चित्रों में उनके हदृय मे भगवान का वास दिखाया है। हदृय भावना का स्थान है। वास्तव मैं मन,बुद्धि और संस्कारों में ईश्वरीय स्मृति का रम जाना ही ईश्वर को दिल मे बिठाना है। हनुमान जी ने संकल्प मे, श्वास - श्वास में भगवान को ही याद किया इसलिए वे अव्यभिचारी(एक की) याद तथा एक बल, एक भरोसे के प्रतीक है।
06.-भोलापन।
07- चतुर सुजान।
08.- संकटमोचन - हनुमान जी के अपने जीवन में | पाँच विकारो (काम,क्रोध,मोह,लोभ,अंहकार) विकारों या इनके अंश का कोई स्थान नही था जो स्वयं भूतों(विकारो) मुक्त हो, वही औरों के भूतो को भी भगा सकता है ||
09.- हनुमान की नम्रता- कहा जाता है कि एक बार भगवान जी ने अपने प्रिय भक्त हनुमान को कोई पद | देना चाहा। हनुमान जी ने नम्रतापूर्वक कहा कि मुझे | किसी भी पद की आवश्यकता नहीं है, मै तो आपके | चरणा में ही रहना चाहता हूँ| सच्चे सेवक किसी पद | या मान-शान की इच्छा नही होती
**मेरे अति प्यारे भाइयो और बहनों आपने अपना किमती समय निकालकर इस पोस्ट को पढ़ा इसके लिए धन्यवाद।
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