*चारित्रिक सुन्दरता ही स्थाई सुन्दरता = आधुनिक महिलाएँ फैशन, सौन्दर्य प्रसाधनों के प्रयोग से अपने व्यक्तित्व को प्रभावशाली बनाना चाहती हैं, कुछ हद तक सफल भी होती हैं परन्तु चेहरा मन का दर्पण है।
आत्म-विश्वास से भरा प्रसन्न मन, मुख पर कांति लाता है। गुणों का सौन्दर्य, सच्चा सौन्दर्य है। बाहर से सुन्दर पर मन से कुरूप अर्थात् घृणा, ईर्ष्या, द्वेष के भाव रखने वाला कुछ समय ही सुन्दर लगता है फिर यह भ्रम टूटते देर नहीं लगती। चारित्रिक सुन्दरता ही स्थाई सुन्दरता है।
*ईश्वर का ध्यान बनाता है निर्भयऔर सबल = आध्यात्मिकता द्वारा सादगी, सरलता, सहिष्णुता,आत्म-संयम, त्याग, परोपकार, संतोष, पवित्रता, उत्साह, हिम्मत जैसे आंतरिक सौन्दर्य बढ़ाने वाले गुण स्वत: ही विकसित होने लगते हैं। आध्यात्मिकता अंतर्जगत का साक्षात्कार कराती है और आत्म-अवलोकन एवं आत्मचिंतन से अपनी कमियों को दूर करने और शक्तियों के विकास का अवसर प्रदान करती है। ईश्वर का ध्यान महिला को निर्भय और सबल बनाता है। वह स्वयं को विकट परिस्थितियों में भी सुरक्षित महसूस करती है। आत्म-ज्ञान, दैहिक आकर्षण की जंजीरों से मुक्त होने में सहायक है और इस प्रकार जीवन स्वत: ही श्रेष्ठ विकास की राह पर अग्रसर हो जाता है।
**मातृशक्ति बने शिवशक्ति = महिला आरक्षण विधेयक तो केवल 33 प्रतिशत महिलाओं को संसद के गलियारो तक पहँचायेगा| महिलाओ की आधी आबादी वाले इस देश में यदि प्रत्येक महिला स्व का ज्ञान प्राप्त कर ले और राजयोग के माध्यम से अपनी कर्मेन्द्रियो की
राजा बन जाये तो उसे मुक्ति और जीवनमुक्ति का वर्मा (जायदाद- सतयुग,त्रेता की) तथा सर्वशक्तियों की प्राप्ति का वरदान स्वतः ही प्राप्त हो जायेगा| इसके लिए उसे न तो नारे लगाते हुए सड़कों पर स उतरने की आवश्यकता है और ना ही आरक्षित सीटों के लिए परस्पर प्रतिस्पर्धा करने की बल्कि ऐसा पुरूषार्थ करने की कि उसका स्थान वैजयंतीमाला में आरक्षित हो जाये|
मातृशक्ति में शिव-शक्ति बनने की संभावना छिपी हुई, उसे साकार रूप देना ही महिला सशक्तिकरण का यर्थाथ स्वरूप है|
**पूर्णमासी का आगाज = पूर्णमासी का आगाज तभी होगा जब नारी को शरीर के आवरण
में छिपी हीरे-तुल्य चमकदार आत्मा समझकर, उसके साथ समानता का व्यवहार किया जाएगा। उसकी मांसलता को नहीं, बौद्धिकता को देखा जाएगा। वह भोगेश्वरी से योगेश्वरी के पद पर विराजमान होगी। वह शरीरभान से आत्मभान की ओर बढ़ेगी। घर-गृहस्थ वासना के केन्द्र नहीं, साधना के शिखर बनेंगे। स्वयं नारी की भी यही प्रकार हैकेवल नारी नहीं, सुनो हम साथी हैं, भगिनी, माँ हैं। नहीं वासना का साधन हैं, हम ममता हैं, गरिमा हैं। मस्तक पर सिंदूर विंदु, अनुराग, त्याग की सीमा हैं।
आँचल में जीवनधारा है, कर में आतुर राखी हैं। हैं गृहिणी, सहधर्मचारिणी, कुल दीपक की वाती हैं।
जव तक नारी के नयनों से वहता है जल खारा। ल तव तक नवयुग का न पूर्ण होगा मृदु स्वप्न तुम्हारा।।.
**अगर आप इसका आडियों सुनना चाहते है तो इस लिंक पर क्लिक करे - https://anchor.fm/positive-thoughts6/episodes/8-March--1----2----3--4-erjtce
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NICE THOUGHTS JEE
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